Tuesday, September 9, 2008

shayari

न जाने तुम पे इतना यकीन क्यों है? तेरा ख्याल भी इतना हसीं क्यों है?
सुना है कि प्यार का दर्द मीठा होता है। तो आँख से निकला आसू नमकीन क्यों है।

चाहत है किसीकी चाहत को पाने की चाहत है चाहत को आजमाने की।
वो चाहे हमे-चाहे न चाहे पर हमारी चाहत है चाहत में मिट जाने की।

मिलते है अच्छे दोस्त सिर्फ़ खुशनसीबो को मेरी किस्मत से जलना छोर दो।
अगर तमन्ना हो मिलने की मेरे दोस्त से तो बस अपनी नज़र आईने की तरफ़ मोड़ दो।

कभी न सिकायत कि बात लबों पे लायेंगे कहा है दोस्त तो दोस्ती निबयेंगे।
कभी हमारी बुराई हमारे सामने करना कसम खुदा कि हम भी आपकी हाँ में हाँ मिलायेंगे।

तेरी तस्वीर आँखों में बसी क्यों है? जिधर देखो उधर तू ही क्यों है?
तेरी यादो से तकदीर है लेकिन तूझे न पाकर तकदीर रूठी क्यों है?

1 comment:

Unknown said...

Lage raho Bullu bhai, Good to see that ek mota shayer bhi hai tere mote badan main.

Day 496

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