Monday, September 22, 2008

shayari

कलम उठाई तो कुछ लिख डाला। भावनाओ को शब्दों का रूप दे डाला।
घायल है जब दिल तो आखो से आँसू निकल पड़े। जब इन्हे कोई स्वरुप देना चाहातो शब्द ही न मिले।

मयखाने में हाथ में थी शराब और ओठो पे शिकायत भी थी। लेकिन शिकायत करते भी तो किस से?
व़हा तो सभी गैर थे और अनजान मेरे गम से। कोई और न मिला तो कह दिया हाल-ऐ-दिल अपना हमने साकी से।
एक वही थी भरी महफिल में मेरे दर्द को सुनने वाली। बाकीयों को पिने से फुर्सत ही कहा थी?

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Day 496

  JAI SHRI RAM   Actually, I thought to write this post on 22 nd January itself, but I was busy whole day in watching the live broadcas...