Wednesday, February 16, 2011

Kavita

 कुछ रिश्ते पास हो कर भी दूर से लगते है, वक़्त के साथ वोह और भी दूर लगने लगते है.
दिल खोजता है कोई साथी अपना, जो हर पल साथ रह सके.
कोई मिलता जिसको अपना कह सकते, बस एक तलाश है जो अब तक जारी है.
कभी कभी याद आते है वोह शाम जब महखाने तक हम जाते थे, थे कुछ लोग वहा जो हमप्याला बने थे.
फिर भी प्यास न ख़तम हुई महखाने में जा कर, तलाश अभी तक जारी है किसी अपने की.
असमंजस में हू कि किस पथ पे जाऊ, हर रास्ता एक नयी उम्मीद दिलाता है.
शायद कोई खरा है पथ के उस ओर, पर किस पथ जाऊ ये सवाल खरा हो जाता है.
नयनो की प्यास और  दिल की आस भुझती नहीं है, और यह जिंदगी कभी रूकती नहीं है.
चलते चलते ना जाने कितनी दूर आ चूका हू, फिर भी चला जा रहा हू.
कही कोई है मेरे इन्तेजार में, बस इसी मृगतृष्णा में जिए जा रहा हू. 

1 comment:

Unknown said...

bahut khubsurat kavita hai!!

Day 496

  JAI SHRI RAM   Actually, I thought to write this post on 22 nd January itself, but I was busy whole day in watching the live broadcas...